श्रीसारंग ठाकुर, श्रीचैतन्य महाप्रभुजी के पार्षद हैं। आपने गंगा के किनारे किसी निर्जन स्थान में तीव्र भजन करके अलौकिक शक्ति प्राप्त की थी।
शिष्य बनाने से भजन में विघ्न होगा, ऐसी आंशका से, श्रीसारंग ठाकुर का शिष्य न बनाने का संकल्प लिया था। किन्तु श्रीचैतन्य महाप्रभुजी आपको शिष्य बनाने के लिये बार-बार प्रेरित करने लगे।
एक दिन ऐसे ही जब आपको श्रीचैतन्य महाप्रभु जी का आदेश प्राप्त हुआ तो श्रीसारंग ठाकुर जी ने संकल्प लिया कि कल को प्रातः काल आप जिसको भी देखेंगे, उसी को शिष्य बना लेंगे।
अगले दिन सुबह आप गंगा नदी में स्नान करने गये। स्नान करते हुये आपके पैरों को किसी ने स्पर्श किया। आपने सोचा की इस समय पैरों में क्या छू रहा है। जब उस वस्तु को उन्होंने उठाया तो वह एक मुर्दा व्यक्ति था।
आपको अपना संकल्प याद आ गया, तब आपने उस मुर्दे को पुनर्जीवन देकर उसे जीवित कर दिया। फिर उसे अपना शिष्य बना लिया।
यह शिष्य ही श्रीठाकुर मुरारी के नाम से प्रसिद्ध हुये। श्रीसारंग ने नाम के साथ 'मुरारी' युक्त होने पर इनका शार्ङ्ग मुरारी नाम हुआ।
श्रील सारंग ठाकुर की जय!
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