श्रीजयदेव जी भगवान श्रीकृष्ण के प्रेमी भक्त थे। आपके हृदय में श्रीकृष्ण प्रेम हिलोरें लेता रहता था। उसी प्रेम के ओत-प्रोत होकर आपने अमृत-रस के समान 'गीत-गोविन्द' नामक ग्रन्थ की रचना करनी प्रारम्भ की। ऐसे में एक दिन मान-प्रकरण में आप, स्वयं भगवान श्रीकृष्ण श्रीमती राधा - रानी के पैर पकड़ेंगे, इस बात को लिखने का साहस नहीं कर पाये।
आपकी पत्नी आपको इतनी शीघ्रता से अन्दर आता देख बोली -- 'अभी-अभी तो आप स्नान करने गये थे, और इतनी जल्दी आप वापिस कैसे आ गये?'
जयदेव रूपी भगवान श्रीकृष्ण ने उत्तर दिया -- 'जाते-जाते एक बात मन में आ गई । बाद में कहीं भूल न जाऊँ, इसलिए लिखने आ गया। '
जयदेव रूपी भगवान श्रीकृष्ण ने भीतर जाकर, उन लिखे हुए पन्नों पर 'देहि पद पल्लवमुदारं' --- लिख कर कर उस श्लोक को पूरा कर दिया।
कमरे से बाहर आ कर जयदेव रूपी भगवान श्रीकृष्ण ने कहा --' अच्छा बहुत भूख लगी है। खाने के लिए कुछ है ? '
श्रीमती पद्मावती जी ने आसन बिछाया, आपको बिठाया और ठाकुर को अर्पित किया हुआ भोग, आपके आगे सजाया। भगवान रूपी जयदेव उसे खाने लगे। कुछ देर बाद हाथ धोकर, अन्दर विश्राम को चले गए।
श्रीमती पद्मावती जी अभी पति द्वारा छोड़ा हुआ प्रसाद पाने बैठी ही थीं की किसी ने दरवाज़ा खटखटाया। उन्होंने उठ कर द्वार खोला तो देखा जयदेव जी खड़े हैं। बड़ी हैरानी से बोलीं --'अभी आप स्नान से आये, कुछ लिखा, प्रसाद पाया, विश्राम के लिए भीतर चले गये ---------- मेरे मन में कुछ सन्देह होता है कि वो कौन थे और आप कौन हैं?'
परम भक्त जयदेव जी सब समझ गये। आप शीघ्रता से घर के भीतर गये
। आपका सारा ध्यान उस अधूरे श्लोक की ओर था जिसे आप आधा लिखा छोड़ कर गये थे। आप अपनी पोथी खोल कर दिव्य अक्षरों का दर्शन करने लगे। रोमांच हो आया आपको तथा प्रेमावेश में आपका हृदय उमड़ आया। आपकी आँखों से अश्रु-धारायें प्रवाहित होने लगीं। आपने अपनी पत्नी से कहा --'पहले मैं नहीं आया था, मेरे रूप में श्रीकृष्ण आये और उन्होंने वो श्लोक पूरा किया। तुम धन्य हो, तुम्हारा जीवन सार्थक है । तुमने श्रीकृष्ण का दर्शन किया और अपने
हाथों से भोजन करवाया।'
श्रीजयदेव गोस्वामी जी की जय !!!!!
परम भक्त जयदेव जी सब समझ गये। आप शीघ्रता से घर के भीतर गये
। आपका सारा ध्यान उस अधूरे श्लोक की ओर था जिसे आप आधा लिखा छोड़ कर गये थे। आप अपनी पोथी खोल कर दिव्य अक्षरों का दर्शन करने लगे। रोमांच हो आया आपको तथा प्रेमावेश में आपका हृदय उमड़ आया। आपकी आँखों से अश्रु-धारायें प्रवाहित होने लगीं। आपने अपनी पत्नी से कहा --'पहले मैं नहीं आया था, मेरे रूप में श्रीकृष्ण आये और उन्होंने वो श्लोक पूरा किया। तुम धन्य हो, तुम्हारा जीवन सार्थक है । तुमने श्रीकृष्ण का दर्शन किया और अपने
हाथों से भोजन करवाया।'
श्रीजयदेव गोस्वामी जी की जय !!!!!
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