मंगलवार, 14 फ़रवरी 2017

अखिल भारतीय श्रीचैतन्य गौड़ीय मठ - यूरोपीय देश - भगवान श्रीचैतन्य महाप्रभुजी की वाणी का प्रचार

श्रीभक्ति विचार विष्णु महाराजजी (अखिल भारतीय श्रीचैतन्य गौड़ीय मठ के ज्वाइन्ट सेक्रेटरी) इन दिनों यूरोपीय देशों की यात्रा पर हैं।

वे वहाँ पर भगवान श्रीचैतन्य महाप्रभुजी की भगवान के दिव्य प्रेम की वाणी के प्रचार के लिये गये हैं। उनके साथ श्रीहरिवल्लभ दास जी भी हैंं। महाराज जी, फ्रांस के श्री लेमोइन गुइलौम के आमन्त्रण पर गये। महाराज जी ने फ्रांस के पैरिस, रोउन और डिजौन में सफल कार्यक्रम किये। 

डिजौन में श्री लेमोइन गुइलौम ने दो विशाल जनसभाओं का आयोजन किया। बहुसंख्या में भक्त-लोग इसमें भाग लेने आये व महाराजजी के विचार सुनने आये। 'Attaining peace in the present times of chaos' and 'Successful life' इत्यादि विषयों पर चर्चा हुई। 

महाराजजी ने निति शास्त्र से उदाहरण देते हुये बताया कि -----      जीवन में सभी सुख के लिये भाग रहे हैं। दुनियाँ के जितने भी कार्य हैं, वे सभी व्यक्तिगत सुख की चाह में ही किये जा रहे हैं। किन्तु ऐसा देखा जाता है कि पूरा-पूरा जीवन बिता देने पर, पूरा जीवन दुनियाँं की सभी वस्तुयें इकट्ठी कर लेने पर भी उन वस्तुओं के सुख-आनन्द से मानव वंचित है। आखिर ऐसा क्यों है? 

इसका कारण है पुण्यों का अभाव। पुण्य का भंडार होने से दुनियावी सुख अपने-आप मनुष्य की झोली में आने लगते हैं। थोड़ी मेहनत से ही बड़े-बड़े फायदे हो जाते हैं। इसलिये पुण्य इकट्ठे करते रहने चाहिये। पुण्य इक्ट्ठे होते हैंं, दूसरों की सयहता करने से, माता-पिता की सेवा करने से, दूसरों पर दया करने से, सबका सम्मान करने से, इत्यादि। इसमें एक बात और है। वो ये की पुण्य आपको दुनियावी सुख तो दे सकते हैं किन्तु वे सुख नित्य नहीं होते। आते-जाते रहते हैं। अब इन सुखों को नित्य कैसे किया जाये? कैसे ये सदा के लिये हमारे हो जायेंगे? क्यों ये हमसे लुका-छिपी करते रहते हैं?

इसका कारण है, सुखमय वस्तु के संग का अभाव। सुखमय वस्तु कौन हैं? एकमात्र भगवान जी सुखमय वस्तु हैं। वे ही सुख के सागर हैं। वे ही आनन्द के स्रोत हैं। संसार की कोई भी वस्तु स्थाई सुख अथवा स्थाई आनन्द नहीं दे सकती। इसलिये मनुष्य को चाहिये कि वो भगवान को प्राप्त करने के लिये प्रयत्न करे। अगर व्यक्ति अपने जीवन में सुख के सागर भगवान को प्राप्त करने में सफल हो जाता है तो उसे स्थाई सुख-आनन्द तो प्राप्त होगा ही, साथ ही उसकी जीवन की जितनी भी अभिलाषायें हैं, वे भी पूर्ण हो जायेंगी, क्योंकि भगवान सर्व-शक्तिमान हैं, वे सब कुछ दे सकते हैं। 

भगवान श्रीकृष्ण ने श्रीमद् भगवद् गीता में स्पष्ट रूप से बताया है कि उनको प्राप्त करने का तरीका क्या है? भगवान ने कहा - मामेंकं शरणम् व्रजः। अर्थात् मेरी शरण में आ जायो।

महाराजजी इन दिनों बर्लिन (जर्मनी) के भक्तों पर कृपा कर रहे हैं। इसके बाद महाराजजी प्राग तथा विएना भी जायेंगे।

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