शुक्रवार, 10 मार्च 2017

श्रीनवद्वीप धाम के अन्तर्गत - श्रीमोदद्रुम - द्वीप

मोदद्रुम द्वीप नवधा भक्ति में से एक 'दास्य - भक्ति' का क्षेत्र है।

यह वृन्दावन के द्वादश वनों में से एक भाण्डीर वन है।
महाराज दशरथ के वचन को पालन करने के लिए, रामचन्द्र जी अयोध्या छोड़कर वनवास में गये थे। अति सुकोमल श्रीचरणों से आप जिस पथ पर चलते, वह पथ कोमल हो जाता था। यहाँ तक कि, श्रीचरणों में ठंड, गर्मी, वर्षा, सूर्यताप भी नहीं लगता था। 

आगे आगे श्रीरामचन्द्र, बीच में जानकी जी एवं पीछे लक्ष्मण जी चलते थे । आपकी शोभा देखकर औरों की क्या बात, जंगल के पशु-पक्षी भी मुग्ध हो जाते थे। 
एक दिन कुछ दूरी से इस नवद्वीप को कुतूहल 
हृदय से देखते हुए भगवान मन्द-मन्द मुस्कराने लगे। आपको ऐसे मुस्कराते देख, श्रीमती जानकी जी ने पूछा -- ' हे प्रभो! अचानक आपने मुस्कराने का क्या कारण है?'

श्रीराम ने उत्तर दिया -- ' द्वापर के बाद कलियुग के प्रारम्भ में, इस नवद्वीप में महान कुतूहल होगा क्योंकि मैं नवद्वीप में अद्भुत विहार करूँगा। यही नहीं, उसके बाद मैं संन्यास ग्रहण करूँगा। अभी जिस प्रकार से भ्रमण कर रहा हूँ, तब भी ऐसे ही भ्रमण करूँगा, इसीलिए वह सब स्मरण हो जाने से मन ही मन 
मैं हंस पड़ा। तब मैं एक बड़े विद्वान की लीला करूँगा। तब मैं नवद्वीप के भक्तों के उल्लास को बढ़ाऊँगा एवं ब्रह्मादि के लिए भी दुर्लभ संकीर्तन का प्रचार करूँगा।'
श्रीमती सीता जी के अनुरोध पर श्रीराम ने उन्हें अपने इस अद्भुत लीला-विलास के दर्शन कराये।
यहाँ आकर श्रीराम, श्रीलक्ष्मण व सीता जी इत्यादि सभी का हर्ष अतिशय वृद्धि को प्राप्त हुआ था, इसलिए यह मोदद्रुम द्वीप के नाम से जाना जाता है।

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