रविवार, 4 जून 2017

'गोविन्द भाष्य'

एक समय की बात है जब प्रसिद्ध वैष्णव आचार्य श्रील विश्वनाथ चक्रवर्त्ती ठाकुर जी बहुत वृद्ध हो गये थे, और वृन्दावन में रह रहे थे। 

उस समय जयपुर के गलता नामक गाँव के श्रीरामानुज सम्प्रदाय के आचार्यों ने जयपुर के महाराजा को गौड़ीय वैष्णव सम्प्रदाय का परित्याग करवा कर रामानुज सम्प्रदाय में लेने के लिये उनके सामने ये सिद्ध करने का प्रयास किया कि गौड़ीय वैष्णव सम्प्रदाय चार प्रमाणिक सम्प्रदायों से बाहर है। इसके साथ - साथ उन्होंने जयपुर के महाराजा को पुनः रामनुज सम्प्रदाय में दीक्षा लेने का परामर्श दिया। 

इस प्रस्ताव से जयपुर के महाराज असमंजस में पड़ गये और उन्होंने वृन्दावन में रह रहे उस समय के प्रधान गौड़ीय वैष्णवाचार्य श्रील विश्वनाथ चक्रवर्ती ठाकुर जी के पास ये संवाद भेजा और जयपुर में आने के लिए उनसे प्रार्थना की। उस समय अतिवृद्ध होने व चल न पाने के कारण आपने अपने छात्र श्रील बलदेव विद्याभूषण प्रभु को जयपुर में जाकर गौड़ीय वैष्णव सम्प्रदाय का सरंक्षण करने का निर्देश दिया।

श्रील बलदेव विद्याभूषण प्रभु, श्रील विश्वनाथ चक्रवर्ती पाद जी से श्रीमद् भागवत शास्त्र अध्ययन करते थे। 

श्रील विश्वनाथ चक्रवर्ती ठाकुर जी के शिष्य श्रीकृष्ण देव जी के साथ बलदेव विद्याभूषण प्रभु जी गुरु आज्ञा का पालन करने के लिये जयपुर में गलता ग्राम की गद्दी में हो रही विचार सभा में उपस्थित हुये।

चारों वैष्णव सम्प्रदायों का अपन-अपना भाष्य है किन्तु गौड़ीय वैष्णव सम्प्रदाय का अपना वेदान्त भाष्य नहीं है । इसलिये रामानुजीय आचार्यों ने गौड़ीय वैष्णव सम्प्रदाय की साम्प्रदायिक मर्यादा को स्वीकार नहीं करना चाहा तो श्रीबलदेव विद्याभूषण प्रभु ने गौड़ीय वैष्णव सम्प्रदाय का वेदान्त का भाष्य लिखने के लिये सात दिन (किसी किसी के मत में तीन महीने) का समय मांगा।

रामानुजीय आचार्यों ने प्रार्थना के अनुसार समय दे दिया। 


श्रीबलदेव विद्याभूषण प्रभु जी ने श्रीगोविन्द जी के मन्दिर में श्रील गुरुदेव और श्रीगोविन्द देव जी से कृपा प्रार्थना करते हुये वेदान्त भाष्य लिखना आरम्भ किया। आपके गले मे, श्रीरूप गोस्वामी जी द्वारा सेवित श्रीगोविन्द देव जी की आशीर्वाद माला अर्पित की गयी। 

गुरु-वैष्णव-भगवान की कृपा से असम्भव भी सम्भव हो जाता है।

आपने वेदान्त के पांच सौ (500) सूत्रों के गौड़ीय वैष्णव सम्प्रदाय के शुद्ध-भक्ति-रस-पूर्ण भाष्य को निर्धारित समय पर ही लिख कर पूरा कर दिया।

गलता गद्दी की सभा में आप के श्रीमुख से प्रेमपरक भाष्य सुन कर सभी चमत्कृत हो उठे।

श्रीगोविन्द जी के आदेश से वेदान्तसूत्रों का भाष्य रचित होने के कारण ये भाष्य 'गोविन्द भाष्य' के नाम से प्रसिद्ध हुआ। 

वेदान्त के गोविन्द भाष्य लिखे जाने के पश्चात ही श्रीबलदेव जी 'विद्याभूषण' की उपाधि से भूषित हुये।

कहा जाता है कि आपने गलता गद्दी पर 'विजय-गोपाल' नामक विग्रह की प्रतिष्ठा की थी।

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें