शनिवार, 16 सितंबर 2017

भगवान किस धर्म की स्थापना के लिये अवतरित होते हैं?

संसार के सभी प्राणी मुख्यतः चार प्रकार का जीवन बिताते हैं। वैदिक दृष्टि से अथवा भारतीय परिवेश एस उस जीवन शैली को आश्रम के नाम से जाना जाता है। वे हैं -- ब्रह्मचर्य आश्रम, गृहस्थ आश्रम, वामप्रस्थ आश्रम व संन्यास आश्रम। 

इस संसार में ज्यादातर लोग गृहस्थ आश्रम में ही रहना पसन्द करते हैं या इसकी चाह रखते हैं। इसका कारण यह है कि केवल इस आश्रम में ही कई प्रकार की सुविधायें हैं। आध्यात्मिक दृष्टि से अपने परिवार व अन्य तीनों आश्रमों की देखभाल करने का और इसमें पुण्य कमाने के अवसर भी बहुत अधिक हैं। यह वो आश्रम है जिसके माध्यम से व्यक्ति संसार बढ़ाता है। जब व्यक्ति विवाह करता है तो इसे शास्त्रीय दृष्टि से गृहस्थ आश्रम में प्रवेश करना कहते हैं। 
गृहस्थ में रहकर, सारी दुनियाँदारी निभाते हुए भी अपने लक्ष्य को हमेशा याद रखना चाहिए। जैसे हमने गाड़ी ली, दिल्ली से वृन्दावन जाने के लिए। पेट्रोल डलवाया और पेट्रोल भरवाकर पेट्रोल पम्प के आसपास ही घूमते रहे, वृन्दावन गये ही नहीं। क्या यह बुद्धिमता होगी?

श्रीगीताजी जैसे पावन ग्रन्थ में भगवान श्रीकृष्ण ने बताया है कि जब-जब धर्म का ह्रास होता है, वे अवतार लेते हैं, इस जगत में धर्म की स्थापना के लिये। अब प्रश्न पूछा जा सकता है कि भगवान कौन से धर्म की स्थापना के लिए अवतरित होते हैं? क्या ब्रह्मचर्य, क्या गृहस्थ, क्या ब्राह्मण धर्म, क्या वर्णाश्रम धर्म, क्या मानवता धर्म अथवा शरीर को स्वस्थ रखने वाले खान-पान, रहन-सहन, इत्यादि के धर्म या मन को प्रसन्न रखने वाले धर्म या बुद्धि को तीक्ष्ण बनाने वाले धर्म ……………………………नहीं!
नहीं! 

कारण यह कि हमारा शरीर, मन, बुद्धि तो आत्मा के आवरण हैंं। कार वाले का आवरण कार है। मकान वाले का आवरण मकान है, उसी प्रकार आत्मा के आवरण हैं शरीर, मन, बुद्धि।

अगर किसी की व्यक्ति की सेवा करनी हो तो क्या उसके कपड़ों की सेवा करने उसकी सेवा हो जायेगी?  जैसे हम अपने कपड़ों का, अपनी कार का, अपने मकान का ध्यान रखते हैं लेकिन इनसे पहले इन के मालिक अर्थात 'हम' अपना ध्यान रखते हैं। क्योंकि इन सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण हैं -- हम।
उसी प्रकार शरीर, बुद्धि, मन का ध्यान रखने के साथ साथ हमें उनके मालिक अर्थात् आत्मा का भी ध्यान रखना चाहिए। भगवान इसी आत्मा के धर्म की स्थापना के लिये आते हैं।

मर्यादा पुरुषोतम श्रीराम चन्द्र जी ने मर्यादा की स्थापना की। मर्यादा के लिए उन्होने रावण का वध किया। वही भगवान श्रीराम जब शबरी के आश्रम में गये तो वहाँं जूठे बेर खाने लगे। क्यों? यह बताने के लिये कि संसार में सबसे श्रेष्ठ धर्म है, भगवत् प्रीति का, प्रेम का।

वैसे भी इस संसार में जितने भी आश्रम व वर्ण या जाति इत्यादि हैं, सब के
सब भगवान की ओर ले जाने के लिये ही हैं। हम सब अपनी रोज़मर्रा की ज़िन्दगी में उलझ कर रह गये हैं। हम अपने मनुष्य जीवन के वास्तविक लक्ष्य को भूल से गये हैं। संसार के कर्म करते हुए अगर हम उस लक्ष्य की प्राप्ति अर्थात् भगवद् प्रेम की, आत्म धर्म की प्राप्ति के लिए चेष्टा करेंगे तो हमारे जीवन में स्थाई सुख की स्थापना हो जायेगी क्योंकि आत्मा व परमात्मा ही आनन्द स्वरूप व परमानन्द स्वरूप हैं। आत्मा व परमात्मा ही जन्म-मृत्यु, ईर्ष्या-द्वेष, बुढ़ापा, बिमारी इत्यादि के बन्धनों से अतीत हैं। 
इसके अलावा आत्मा की नित्य-वृति, परमात्मा-भगवान को चाहना व उनकी सेवा करके उसे हर तरह से प्रसन्न करना है। आत्मा और परमात्मा का आपसी नित्य व सुखमय सम्बन्ध है प्रेम का। इसी प्रेम धर्म की स्थापना के लिए युग-युग में भगवान अवतार लेते हैं।

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