शुक्रवार, 2 मार्च 2018

भगवान ने आपके पुत्र को जीवित कर दिया…

एक दिन श्रीवास पण्डित के इकलौते पुत्र की मृत्यु हो गई । उस समय श्रीवास पण्डित के घर में श्रीचैतन्य महाप्रभु अपने भक्तों के साथ श्रीहरिनाम संकीर्तन कर रहे थे।

पुत्र के जाने के कारण घर की सभी स्त्रियाँ रोने लगीं।  स्त्रियों का रोना सुन कर श्रीवास घर के अन्दर गये। सारी बात पता चलने पर भी बड़े ही धैर्य के साथ उन्होंने सबको रोने के लिए मना कर दिया।
कुछ देर बाद फिर रोने की आवाज़ें बाहर आने लगीं। श्रीवास पण्डित श्रीमहाप्रभु के संकीर्तन के आनन्द में कोई विघ्न नहीं उत्पन्न करना चाहते थे , अतः फिर अन्दर गये व स्त्रियों से कहा की ऐसे ही रोती रहेंगी आप सब, तो मैं गंगा में कूद कर जान दे दूँगा।

सब चुप हो गईं ।

काफी रात तक कीर्तन करने के बाद अन्तर्यामी भगवान श्रीचैतन्य महाप्रभु जी कहने लगे, 'आज मेरा चित्त कैसे-कैसे करता है? पण्डित के घर में कोई दुःख हुआ है क्या?'

श्रीवास पण्डित ने तपाक से कहा, ' हे प्रभो ! जिसके घर में आपका सुप्रसन्न श्रीमुख हो उसे भला क्या दुःख हो सकता है?'

लेकिन श्रीमहाप्रभु सन्तुष्ट नहीं हुए। तब अन्य भक्तों ने कहा -- 'प्रभो ! श्रीवास का एकमात्र पुत्र आधी रात में गुज़र गया है।'

श्रीमन्महाप्रभु जी ने कहा, 'इतने समय में मुझे क्यों नहीं बताया?'
…'प्रभु ! आपके कीर्तन में बाधा होगी, इसलिए श्रीवास ने बताने से मना किया था……'

'ऐसे प्रेमी भक्तों को मैं कैसे छोड़ कर जाऊँगा '-- ऐसा कहकर श्रीमहाप्रभु जी आँसु बहाने लगे।

इसके पश्चात् श्रीमहाप्रभु उठे और मृत शिशु के पास आकर बोले -- 'ओहे बालक ! तुम ने श्रीवास जैसे भक्त के घर को छोड़ कर कहीं और जाने की इच्छा क्यों की?'

भगवान ने पूछा और वो मृत बालक उठ बैठा।

उसने उत्तर दिया -- 'हे प्रभु ! जितने दिन मेरा श्रीवास जी के घर में रहने का समय था, उतने दिन यहाँ रहा। अब आपकी इच्छा के अनुसार मैं दूसरे स्थान पर जा रहा हूँ । मैं तो आपका नित्य अनुगत अस्वतन्त्र प्राणी हूँ। आपकी इच्छा के विरुद्ध मैं कुछ नहीं कर सकता। आप मुझ पर ऐसी कृपा कीजिए, जिससे मैं कभी भी व किसी भी अवस्था में आपके श्रीचरणों को ना भूल पाऊँ।'

यह कहकर वह बालक दोबारा लेट गया।

मृत शिशु के मुख से इस प्रकार के ज्ञान से भरे वाक्य सुनकर श्रीवास के परिवार को दिव्य ज्ञान हुआ व उनका शोक दूर हो गया।

भगवान श्रीचैतन्य महाप्रभु जी की जय !!!!!

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